MISSION CORUPTION REVOLUTION & SOCIAL WORKER ANNA HAZARE WITH SAPORT JANSEWAMANCH BAREILLY PREIDENT PAMMI WARSI KI BAREILLY WASIYON SE SAATH AANE KI APIL,
भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ने वाली रकम का हिसाब लगाना नामुमकिन है। फिर भी एक मोटे अनुमान के आधार पर कहा जाए तो सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई जिस मकसद से शुरू की है, वह पूरा हो जाए तो सिर्फ चुनावी राजनीति में ही ढाई लाख करोड़ रुपये के वारे-न्यारे होने से बच सकते हैं। भ्रष्टाचार की कीमत समाज को चौतरफा चुकानी पड़ती है। राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण के मोर्चे पर। दूसरी ओर, दिल्ली के जंतर मंतर पर आमरण अनशन पर बैठे अन्ना हजारे का अनशन दूसरे दिन भी जारी है। समाज के अलग-अलग हिस्सों से अन्ना को समर्थन मिलने का सिलसिला जारी है।
आर्थिक मोर्चे पर भ्रष्टाचार सीधे विकास और जीडीपी को प्रभावित करता है। विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में 1 खरब डॉलर से भी ज्यादा रकम हर साल भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है। भारत जैसे विकासशील देशों में हर साल 20 से 40 अरब डॉलर लोग रिश्वत देने-लेने में होम कर देते हैं। इतनी बड़ी रकम की हेराफेरी का समाज पर गरीबी, भुखमरी, सुविधाहीनता, विकास की कमी आदि के रूप में जो असर पड़ता है, उसका हिसाब लगाना भी मुश्किल है।
केपीएमजी की रिपोर्ट के मुताबिक भ्रष्टाचार से भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को गंभीर खतरा है और इसके परिणामस्वरूप देश का राजनीतिक और आर्थिक ढांचा चरमरा सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में रियल एस्टेट और निर्माण के कार्यों में सबसे अधिक भ्रष्टाचार होता है। इस तरह के अधिकतर काम राजधानी दिल्ली में होते हैं जहां इंफ्रास्टक्चर के क्षेत्र में अगले दशक तक डेढ़ खरब डॉलर खर्च किए जाने की योजना है। देश के दूरसंचार उद्योग में भी भ्रष्टाचार बुरी तरह घर कर चुका है।
अमेरिका स्थित ग्लोबल फाइनेंसियल इंटेग्रिटी की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक उदारीकरण के दौर में भ्रष्टाचार बढ़ा है। रिपोर्ट के मुताबिक 1948 से 2009 के बीच भारत का 462 अरब डॉलर काली कमाई के तौर पर विदेशी बैंकों में जमा हुआ है। यह रकम भारत के विदेशी कर्ज (230 अरब डॉलर) का दोगुना और देश की जीडीपी का 16.6 प्रतिशत है। भारत को हुए इस आर्थिक नुकसान का करीब 68 प्रतिशत 1991 (उदारीकरण) के बाद ही हुआ है।
चुनावों से ढाई लाख करोड़ का चूना
मैनेजमेंट गुरू सी के प्रहलाद के मुताबिक भ्रष्टाचार की वजह से देश को ढाई लाख करोड़ रुपये का नुकसान होता है। इन्होंने राजनेताओं द्वारा चुनावों के दौरान किए जाने वाले खर्च और चुनाव जीत जाने के बाद इस खर्च को वसूलने की प्रवृत्ति को भ्रष्टाचार के लिए प्रमुख तौर पर जिम्मेदार माना है।
2009 में हुए लोकसभा चुनावों में देश में 10 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए। इसमें 1300 करोड़ चुनाव आयोग ने खर्च किए जबकि 700 करोड़ केंद्र व राज्य सरकारों ने खर्च किए। बाकी बचे 8000 करोड़ रुपये राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों ने खर्च किए हैं। प्रहलाद कहते हैं कि यदि राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को शामिल कर लिया जाए तो यह रकम 25 हजार करोड़ को पार कर जाती है। उनका कहना है कि चुनावों में निवेश करना जोखिम भरा सौदा होता है लेकिन राजनेता इसके बदले में 10 गुनी कमाई भी कर लेते हैं।
5 घोटालों में लुट गया आधा खजाना
देश में पिछले एक साल में सामने आए पांच बड़े घोटालों में सरकारी खजाने को जितने का चूना लगा है, वह दो साल का राजकोषीय घाटा पाटने के लिए काफी है। इन घोटालों में करीब पांच (4.82) लाख करोड़ रुपये की चपत लगी है। यह रकम कितनी बड़ी है, इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि वित्त वर्ष २०१०-११ के लिए भारत का सालाना खर्च 11.8 लाख करोड़ रुपये है। घोटाले में गंवाई गई रकम इसके आधे से थोड़ी ही कम है।
गौरतलब है कि देश की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद, जिसके आधार पर विकास दर तय होती है) करीब 55 लाख करोड़ रुपये है। इस रकम का 10 फीसदी केवल उन चंद लोगों की जेब में पहुंच गया, जिन्होंने ये 5 बड़े घोटाले किए।
इन घोटालों के चलते जनता को हुए नुकसान का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वित्त वर्ष २०१०-११ के लिए सर्व शिक्षा अभियान का बजट सिर्फ 15,000 करोड़ रुपये है। ग्रामीण इलाकों में हर हाथ को काम देने की महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा के लिए 40,100 करोड़ रुपये, देश की बाहरी दुश्मनों से हिफाजत के लिए रक्षा बजट 1,47,344 करोड़ रुपये और स्कूलों में दोपहर के भोजन के लिए 9,300 करोड़ रुपये की रकम तय की गई थी। साफ है कि घोटाले में खोयी गई रकम से इन सभी योजनाओं को कई सालों तक चलाया जा सकता है।
ऑस्ट्रेलिया में भी भ्रष्टाचार से निपटने के लिए वहां की सरकार ने कड़े कदम उठाने शुरू किए हैं। वहां हर साल सामाजिक सुरक्षा से जुड़े घपलों और रिश्वतखोर सरकारी अफसरों से सरकारी खजाने को 600 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर का चूना लगता है।
आपकी राय
भारतीय समाज में फैले भ्रष्टाचार और इसे कम करने को लेकर आपकी क्या राय है? क्या भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो गई हैं कि अब इसे मिटाना मुश्किल है या फिर सरकार इसे मिटाना नहीं चाहती? भ्रष्टाचार मिटाने में सरकार का ज्यादा रोल है या समाज का? क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि भ्रष्टाचार पूरी तरह मिट जाए तो समाज का स्वरूप कैसा होगा? अपनी बात नीचे कमेंट बॉक्स में लिखें और दुनिया भर के पाठकों से शेयर करें...
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