Dainik jagran 20.03.2011
सपने साकार करने की जुस्तजु बनी जुनून
बुलंद हौसले के आगे शिकस्त खा गई अपंगता, हाथ पांव वालों के लिए बने नजीर
बरेली : कुदरत और वक्त ने भले साथ न दिया पर बुलंद हौसले से हर सपने को सच दिखाया। दुनिया ने हमदर्दी दिखाई पर खुद के बूते वह मुकाम पा लिया कि लोगों के लिए नजीर बन गये। शहर के ओमकार नाथ, नाहिद बेग और पम्मी खां वारसी ऐसे शख्श हैं जिनसे विकलांगता हार गई। मोहम्मद खालिद खान की रिपोर्ट।
पम्मी खां वारसी ग्यारह माह में पोलियो का शिकार हुए पम्मी का इलाज कराने की तमाम कोशिशें हुईं मगर सफलता नहीं मिली। बरेली कालेज से स्नातक करने के साथ वह सामाजिक कार्यो में जुटे रहते हैं। मिस्त्र और लीबिया में फेसबुक के जरिये जन आन्दोलन तो हाल की बात है ऐसा ही एक कारनामा वह पिछले साल अगस्त में कर चुके हैं। कोहिनूर का नूर हमारा है इस मुहिम को उन्होंने शुरू किया जिसमें 75,0000 लोगों का समर्थन मिला। भारत यात्रा के दौरान ब्रिटिश प्रधानमंत्री को इस प्रकरण सफाई देनी पड़ी। इसके अलावा पम्मी ने बाढ़ पीडि़तों व दैवीय आपदा से पीडि़तों की भी मदद की है। प्रशासन के सहयोग से शहर में ईव टीजिंग मामलों में आपरेशन दीदी भी चलवाया। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नवाब हाफिज रहमत खां का मकबरा बनवाया अब इस स्थल को पर्यटन के मानचित्र में लाने का प्रयास कर रहे है। ओमकार नाथ एडवोकेट चाय विक्रेता से मुंशी, अर्जी नवीस, कातिब और अब वकील बने ओमकार का सपना जज बनने का है। महज सात साल की उम्र में करंट लगने से दोनों हाथ गवां बैठे, फिर रामगंगा के सैलाब ने पैतृक खेती और घर निगल लिया तो सीबीगंज के नंदौसी गांव में आशियाना बनाया। पिता का साया सिर से उठ गया फिर भी उनकी मां उन्हें पढ़ने को प्रोत्साहित करती रहीं। दिक्कतें आयीं, गांव के मास्टर जी ने दोनों हाथों से असहाय बच्चे को पढ़ाने से मना कर दिया। काफी मान मनौव्वल के बाद मास्टरजी राजी हुए तो बोले पहले लिखकर दिखाओ। कोहनी तक कटे हाथों में लकड़ी फंसाकर जमीन में छोटा अ लिखकर दिखाया तब एडमिशन हो सका। इलाहाबाद से हाईस्कूल, इंटर और हरदोई से गे्रजुएशन करने के बाद कचहरी में वकील चौधरी सहदेव सिंह के यहां 5 रुपये रोज पर काम शुरू कर दिया। एलएलबी करने के बाद जज बनने की तमन्ना है मगर अक्षमता आड़े आ रही। अपनी मां को आदर्श मानने वाले ओमकार इन दिनों जीवन संगिनी की तलाश में हैं। नाहिद बेग तीन साल की उम्र में पोलियो होने पर वालिद ने तमाम कोशिश की पर बेटे को अपने पैरों पर खड़ा नहीं कर पाये। एक डॉक्टर ने यकीन दिलाया कि आपरेशन से पैर ठीक हो सकता है तो वह भी कराया। पर डॉक्टर की लापरवाही से पैर में सेप्टिक हुआ और बाद में उसे काटना पड़ गया। दूसरों की हमदर्दी के बीच बड़े हुए नाहिद ने वालिद की फिक्र कम करने के लिए खुद मुकाम पाने की ठान ली। बरेली कालेज से बीकाम करके घर में बच्चों को कोचिंग भी देते हैं। अब ख्वाहिश है अपने जैसों के लिए ऐसा ठिकाना बनाने की जहां शिक्षा के साथ रोजगार का भी जुगाड़ हो सके। थियेटर के शौकीन नाहिद बेग ने कई नुक्कड़ नाटकों का निर्देशन भी किया है। रियलिटी शो डांस इंडिया डांस की ट्राफी जीतने की तैयारी में हैं।
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